NCERT Solutions class 10 Hindi manvi karuna ki Divya chamak||class 10 Hindi solution||मानवीय करुणा की दिव्य चमक पाठ का सार||मानवीय करुणा की दिव्य चमक प्रश्न उत्तर
मानवीय करुणा की दिव्य चमक
[सर्वेश्वर दयाल सक्सेना]
पाठ का सार
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने फादर कामिल बुल्के के जीवन का चित्रांकन किया है। फादर बुल्के का जन्म बेल्जियम के रैंप चैपल में हुआ।वे भारतीय संस्कृति से इतने प्रभावित हुए कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़कर सन्यास ले कर भारत आ गए। भारत में उन्होंने जिसेक संघ मैं 2 साल तक पादरियों के बीच रहकर धर्माचार्य की शिक्षा प्राप्त की। 9-10 वर्ष में दार्जिलिंग में रहकर अध्ययन कार्य किया। कोलकाता से बीए तथा इलाहाबाद से एमए की शिक्षा प्राप्त की। वह हिंदी भाषा से अत्यधिक प्रभावित थे। उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से सन 1950 मैं एक शोध प्रबंध रामकथा :'उत्पत्ति और विकास' लिखा। फादर ने मातर लिंक के प्रसिद्ध नाटक ब्लू बर्ड का रूपांतर हिंदी में नील पक्षी के नाम से किया। रांची में सेंट जेवियर कॉलेज के हिंदी तथा संस्कृत विभाग की विभागाध्यक्ष के रूप में काम किया। बाइबल का हिंदी में अनुवाद किया तथा प्रसिद्ध अंग्रेजी- हिंदी शब्द कोश तैयार किया। फादर बुल्के संकल्प से सन्यासी थे मन से नहीं। एक बार रिश्ता बनाकर, तोड़ना उनके स्वभाव में नहीं था। वह हर दुख -सुख में लोगों के साथ रहते थे उन्हें सांत्वना देते थे। वह हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहते थे। जब भी वह किसी हिंदी भाषि को हिंदी की उपेक्षा करते हुए देखते तब मैं बहुत क्रोधित होते थे। फादर बुल्के की मृत्यु दिल्ली में जहर बाद के कारण हुई। 18 अगस्त 1982 कि सुबह कश्मीरी गेट के निकल सन कबृगाह मैं उनका ताबूत एक नीली गाड़ी से रघुवंश जी के बेटे, परिजन राजेश्वर सिंह और कुछ पादरियों ने उतारा और अंतिम छोर पर घनी पेड़ों की छाया से ढके तब तक ले गए। वहां उपस्थित लोग जैनेंद्र कुमार, डॉ निर्मला जैन, इलाहाबाद के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ सत्यपाल ,डॉक्टर रघुवंश और पादरी समुदाय थे। मसीह विधि से उनका अंतिम संस्कार हुआ। सेंट जेवियर के रेक्टर फादर पास्कल ने उनके जीवन और कर्म पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा फादर बुल्के धरती में जा रहे हैं। इस धरती से ऐसे रत्न और पैदा हो। डॉ सत्यपाल जी ने भी उनके अनुकरणीय जीवन को नमन किया।लेखक सोचता है कि मैं नहीं जानता कि इस सन्यासी ने कभी सोचा होगा कि उसकी मृत्यु पर कोई रोयेगा लेकिन रोने वालों की संख्या कम नहीं थी। हमारे बीच वह चला गया जो अधिक छायादार फल फूल गंध से भरा और सबसे अलग सबका होकर सबसे ऊंचाई पर मानवीय करुणा की दिव्य चमक में लहराता हुआ खड़ा था।
प्रश्न अभ्यास
प्रश्न 1.फ़ादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी क्यों लगती थी?
उत्तर-जिस प्रकार देवदार का वृक्ष विशाल होता है और अपनी छाया में शरण देता है ठीक उसी प्रकार फादर बुल्के का व्यक्तित्व था। वह हर किसी के सुख दुख में साथ देते उन्हें सांत्वना देते थे।वह सभी के घरों में मनाए जाने वाले उत्सवों में बड़े भाई और पुरोहित के रूप में शामिल होकर सब को आशीर्वाद देते। इसी कारण लेखक को फादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी लगती है।
प्रश्न 2.फ़ादर बुल्के भारतीय संस्कृति के एक अभिन्न अंग हैं, किस आधार पर ऐसा कहा गया है?
उत्तर-फ़ादर बुल्के भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग बन चुके थे। उन्होंने भारत में रहकर अपने देश घर-परिवार आदि को पूरी तरह से भुला दिया था। 47 वर्षों तक भारत में रहने वाले फ़ादर केवल तीन बार ही अपने परिवार से मिलने बेल्जियम गए। वे भारत को ही अपना देश समझने लगे थे। वे भारत की मिट्टी और यहाँ की संस्कृति में रच बस गए थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति के लिए बहुत से काम किए। कोलकाता से बीए किया और फिर इलाहाबाद से एमए किया।प्रयाग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में रहकर 1950 में एक शोध पूरा किया रामकथा: उत्पत्ति और विकास। उन्होंने प्रसिद्ध मातर लिंक की नाटक ब्लू बर्ड का रूपांतर हिंदी में नील पक्षी के नाम से किया। उन्होंने प्रसिद्ध अंग्रेजी- हिंदी कोश तैयार किया और बाइबिल का हिंदी में अनुवाद किया। इन सभी तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि फादर बुल्के भारतीय संस्कृति के एक अभिन्न अंग थे।
प्रश्न 3.पाठ में आए उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जिनसे फ़ादर बुल्के का हिंदी प्रेम प्रकट होता है?
उत्तर-फ़ादर बुल्के का हिंदी प्रेम प्रकट करने वाले प्रसंग निम्नलिखित हैं
- फ़ादर बुल्के ने कोलकाता से बी०ए० करने के बाद हिंदी में एम०ए० इलाहाबाद से किया।
- उन्होंने प्रसिद्ध अंग्रेजी- हिंदी शब्दकोश तैयार किया।
- मातरलिंक के प्रसिद्ध नाटक ‘ब्लू बर्ड’ का हिंदी में ‘नील पंछी’ नाम से रूपांतरण किया।
- प्रयाग विश्वविद्यालय मैं हिंदी विभाग मैं रह कर ‘रामकथा-उत्पत्ति एवं विकास’ पर शोध प्रबंध लिखा।
- परिमल नामक हिंदी साहित्यिक संस्था के सदस्य बने।
- वे हिंदी को राष्ट्रभाषा का गौरव दिलवाने के लिए सतत प्रयत्नशील रहे।
प्रश्न 4.इस पाठ के आधार पर फ़ादर कामिल बुल्के की जो छवि उभरती है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
फ़ादर कामिल बुल्के की छवि संकल्प से संन्यासी जैसे व्यक्ति की उभरती है। उनका लंबा शरीर ईसाइयों के सफ़ेद चोंगे में। हुँका रहता था। उनका रंग गोरा था तथा चेहरे पर सफ़ेद भूरी दाढ़ी थी। उनकी आँखें नीली थीं। वे इतने मिलनसार थे कि एक बार संबंध बन जाने पर सालों-साल निभाया करते थे। वे पारिवारिक जलसों में पुरोहित या बड़े भाई की तरह उपस्थित होकर आशीर्वादों से भर देते थे, जिससे मन को अद्भुत शांति मिलती थी। उस समय उनकी छवि देवदार के विशाल वृक्ष जैसी होती थी।
प्रश्न 5.लेखक ने फ़ादर बुल्के को ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ क्यों कहा है?
उत्तर-लेखक द्वारा फादर बुल्के को मानवीय करुणा की दिव्य चमक कहा गया है। फादर बुल्के करुणा से भरे शांत स्वभाव के व्यक्ति थे। उनके मन में सबके प्रति प्रेम और वात्सल्य था।वे सभी के सुख दुख में सम्मिलित होते थे उनके द्वारा कहे गए सांत्वना के शब्द बड़े बड़े दुख को सहन करने की शक्ति देते थे। सन्यासी होने पर भी सबसे मधुर पारिवारिक घनिष्ठ संबंध बना लेते थे। वह जल्दी से किसी को बोलते नहीं थे तब से अलग होकर भी सबके थे इसलिए लेखक ने फादर बुल्के को मानने पर ना की दिव्य चमक कहां है।
प्रश्न 6.फ़ादर बुल्के ने संन्यासी की परंपरागत छवि से अलग एक नई छवि प्रस्तुत की है, कैसे?
उत्तर-फ़ादर बुल्के परंपरागत संन्यासियों से भिन्न थे। वे मन के नहीं संकल्प के संन्यासी थे। वे एक बार संबंध बनाकर तोड़ना नहीं जानते थे। वे लोगों से अत्यंत आत्मीयता से मिलते थे। वे अपने परिचितों के दुख-सुख में शामिल होते थे और देवदारु वृक्ष की सी शीतलता से भर देते थे। इस तरह उन्होंने परंपरागत संन्यासी से हटकर अलग छवि प्रस्तुत की।
प्रश्न 7.
आशय स्पष्ट कीजिए
(क) नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है।
(ख) फ़ादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है।
उत्तर-
(क) आशय यह है कि फ़ादर की मृत्यु पर अनेक साहित्यकार, हिंदी प्रेमी, ईसाई धर्मानुयायी एवं अन्य लोग इतनी संख्या में उपस्थित होकर शोक संवेदना प्रकट कर रहे थे कि उनकी गणना करना कठिन एवं उनके बारे में लिखना स्याही बर्बाद करने जैसा था अर्थात् उनकी संख्या अनगिनत थी।
(ख) आशय यह है कि फ़ादर को याद करते ही उनका करुणामय, शांत एवं गंभीर व्यक्तित्व हमारे सामने आ जाता है। उनकी याद हमारे उदास मन को विचित्र-सी उदासी एवं शांति से भर देती है। ऐसा लगता है जैसे हम एक उदाससा संगीत सुन रहे हैं।
साहित्यकार, हिंदी प्रेमी, ईसाई धर्मानुयायी एवं अन्य लोग इतनी संख्या में उपस्थित होकर शोक संवेदना प्रकट कर रहे थे कि उनकी गणना करना कठिन एवं उनके बारे में लिखना स्याही बर्बाद करने जैसा था अर्थात् उनकी संख्या अनगिनत थी।
(ख) आशय यह है कि फ़ादर को याद करते ही उनका करुणामय, शांत एवं गंभीर व्यक्तित्व हमारे सामने आ जाता है। उनकी याद हमारे उदास मन को विचित्र-सी उदासी एवं शांति से भर देती है। ऐसा लगता है जैसे हम एक उदाससा संगीत सुन रहे हैं।
रचना एवं अभिव्यक्ति
प्रश्न 8.
आपके विचार से बुल्के ने भारत आने का मन क्यों बनाया होगा?
उत्तर-
भारत की गणना प्राचीनकाल से ही ज्ञान और आध्यात्म का केंद्र रहा है। यह ऋषियों-मुनियों की पावनभूमि है जहाँ गंगा-यमुना जैसी मोक्षदायिनी नदियाँ बहती हैं। इसी भूमि पर राम, कृष्ण, गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी, गुरुनानक, रैदास, तुलसीदास आदि महापुरुषों ने जन्म लिया और अपने कार्य-व्यवहार से दुनिया को शांति का संदेश दिया। फ़ादर बुल्के इन महापुरुषों से प्रभावित हुए होंगे और भारत आने का मन बनाया होगा।
प्रश्न 9.
‘बहुत सुंदर है मेरी जन्मभूमि-रैम्सचैपल।’-इस पंक्ति में फ़ादर बुल्के की अपनी जन्मभूमि के प्रति कौन-सी भावनाएँ अभिव्यक्त होती हैं? आप अपनी जन्मभूमि के बारे में क्या सोचते हैं?
उत्तर-
‘बहुत सुंदर है मेरी जन्मभूमि-रैम्सचैपल’ इस पंक्ति में फ़ादर बुल्के का अपनी मातृभूमि के प्रति असीम लगाव प्रकट हुआ है। इसी लगाव एवं मातृभूमि से प्रेम के कारण उन्हें मातृभूमि सुंदर लग रही है। मैं भी अपनी मातृभूमि के बारे में फ़ादर बुल्के जैसी ही सुंदर भावनाएँ रखता हूँ। मेरी जन्मभूमि स्वर्ग के समान सुंदर तथा समस्त सुखों का भंडार है। यह हमारा पोषण करती है तथा हमें स्वस्थ एवं बलवान बनाती है। यह हमारी माँ के समान है। एक ओर यहाँ की छह ऋतुएँ इसकी जलवायु को उत्तम बनाती हैं तो दूसरी ओर अमृततुल्य जल से भरी गंगा-यमुना प्राणियों की प्यास बुझाती हैं। मैं अपनी मातृभूमि पर गर्व करता हूँ और इसकी रक्षा करते हुए अपना सर्वस्व अर्पित करने को तत्पर रहता हूँ।
By- Yatendra Kumar
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