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Class 10 CBSE history chapter 2 notes in Hindi||भारत में राष्ट्रवाद Notes||class 10 history

 प्रथम विश्व युद्ध खिलाफत और असहयोग आंदोलन

  • प्रथम विश्व युद्ध 1914-ने संपूर्ण विश्व में एक नई आर्थिक और राजनीतिक स्थिति का निर्माण किया।
  • इस युद्ध के दौरान भारत को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ा:-
  1. रक्षा वय मैं इजाफा।
  2. सेना  में जबरन भर्ती।
  3. आयकर की शुरुआत।      

  • प्रथम विश्व युद्ध के बाद वर्ष 1918 से 1921 के दौरान भारतीय उद्योगों की अत्यधिक हानि हुई। देश के अत्यधिक हिस्सों में फसलें खराब और नष्ट हो गई।
  • इसी समय फ्लू की महामारी फैल गई।
सत्याग्रह का विचार
  • गांधी जी का सत्य और अहिंसा के आधार पर आंदोलन और विरोध का तरीका सत्ता ग्रह कहलाता है।
  • गांधीजी का मानना था कि आक्रमक हुए बिना एक सत्याग्रही अहिंसा के माध्यम से युद्ध जीता जा सकता है।
  • भारत में आने के बाद गांधीजी ने कई स्थानों पर सत्याग्रह आंदोलन चलाएं
  1. चंपारण सत्याग्रह 1916-गांधी जी बिहार के चंपारण में गए और किसानों को एक दमनकारी बागान व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष करने के लिए प्रोत्साहित किया।
  2. खेड़ा सत्याग्रह 1917-गांधीजी ने गुजरात के खेड़ा जिले में किसानों की मदद के लिए सत्याग्रह  का आयोजन किया जो फसल खराब हो जाने और ब्लैक की महामारी के कारण लगान चुकाने में असमर्थ थे।
  3. अहमदाबाद मिल हड़ताल 1918-गांधीजी ने सूती कपड़ा कारखानों की श्रमिकों के बीच सत्याग्रह आंदोलन चलाया।
रौलेट एक्ट

  • वर्ष 1919 में रौलेट अधिनियम सर सिडनी रोलेट द्वारा इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल के माध्यम से पारित किया गया।
  • इस अधिनियम के अनुसार राजनीतिक कैदियों को बिना मुकदमा चलाए 2 साल तक जेल में रखा जा सकता है।
  • महात्मा गांधी ने इस अन्याय पूर्ण कानूनों के के लिए 6 अप्रैल 1919 को सत्याग्रह का आयोजन किया।
  • अमृतसर में विभिन्न स्थानीय नेताओं को बंदी बनाया गया ,साथ‌‌ ही गांधी जी की दिल्ली में प्रवेश करने पर पाबंदी लगाई गई।
  • 10 अप्रैल 1919 को अमृतसर में पुलिस ने एक शांतिपूर्ण जुलूस पर गोलियां चलाई। इस घटना के बाद लोगों ने बैंकों डाकघरों और रेलवे स्टेशनों पर हमला किया, जिसके फलस्वरूप मास्टर लॉक लगाया गया और जिसकी कमान जनरल डायर को सौंपी।
जलियांवाला बाग नरसंहार 
  • 13 अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग मैदान में अत्यधिक लोग एकत्रित हुए।
  • यह मैदान शहर से दूर था इसलिए वहां लागू हो चुके मार्शल लॉ की जानकारी लोगों को नहीं थी।जनरल डायर ने उस क्षेत्र में प्रवेश किया और उस मैदान से बाहर निकालने के सभी रास्ते बंद कर दिए। इसके पश्चात जनरल डायर के ने सिपाहियों ने भीड़ पर अंधाधुंध गोली चला दी इस घटना में सैकड़ों लोग मारे गए।
  • जलियांवाला बाग हत्याकांड की खबर फैलने के कारण लोग सड़कों पर प्रदर्शन करने लगे हड़ताल होने लगी और तथा लोगों ने सरकारी भवनों पर हमला किया।
  • रविंद्र नाथ टैगोर ने इस घटना के विरोध में अपनी नाइटहुड की उपाधि छोड़ दी।
  • महात्मा गांधी ने अत्यधिक हिंसा फैलने के कारण आंदोलन को यहीं बंद कर दिया।

असहयोग आंदोलन ]

आवश्यकता-

-गांधीजी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक हिंद स्वराज ने कहा था कि भारत में ब्रिटिश शासन भारतीयों के सहयोग से ही स्थापित हुआ था और यह इसी के सहयोग के कारण चल पा रहा है। अगर भारत के लोग अपना सहयोग वापस ले लें तो साल भर के भीतर ब्रिटिश शासन ढह जाएगा और स्वराज की स्थापना हो जाएगी।

गांधी जी ने असहयोग आंदोलन के कार्य वाहन के लिए निम्नलिखित रणनीतियां तैयार की:-

  • लोगों को सरकार द्वारा दी गई पगलिया लौटा देनी चाहिए।
  • सरकारी नौकरियां ,सेना ,पुलिस ब्रिटिश न्यायालय और विधानसभाओं ,स्कूल ,कॉलेज और ब्रिटिश सामान का बहिष्कार करना चाहिए।
  • कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना होगा उसके स्थान पर घरेलू वस्तुओं या स्देशी वस्तुओं को उपयोग में लाना होगा।
  • अगर सरकार दमन का रास्ता बनाती है तो व्यापक सविनय अवज्ञा आंदोलन भी शुरू किया जाएगा।
असहयोग आंदोलन की अलग-अलग धाराएं

असहयोग आंदोलन जनवरी 1921 में शुरू हुआ।

  1. शहरों में आंदोलन
  • यह आंदोलन शहर में मध्यम वर्ग की भागीदारी के साथ शुरू हुआ।
  • छात्रों और शिक्षकों ने सरकार द्वारा नियंत्रित स्कूल कॉलेज छोड़ दिए और वकीलों ने मुकदमे लड़ना बंद कर दिए।
  • मद्रास की अतिरिक्त प्रांतों में परिषद चुनाव का बहिष्कार किया गया।
  • विदेशी सामान का बहिष्कार किया गया ,शराब की दुकानों की पिकेटिंग की गई और विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई।
  • 1921 से 1922 के बीच विदेशी कपड़ा का आया आधा रह गया था असहयोग आंदोलन के कारण।
असहयोग ‌आंदोलन की गति शहरों में धीमी होने के कारण:

-खादी का कपड़ा महंगा होने के कारण गरीबों के लिए उपयुक्त नहीं था। जिसके कारण वह लंबे समय तक विदेशी कपड़े का विरोध नहीं कर पाए।

-आंदोलन की कामयाबी के लिए वैकल्पिक भारतीय संस्थानों की स्थापना जरूरी थी ताकि ब्रिटिश संस्थानों किस स्थान पर उसका प्रयोग किया जा सके। लेकिन इसकी स्थापना की प्रक्रिया धीमी थी जिसके कारण विद्यार्थी और शिक्षक सरकारी संस्थानों में लौटने लगे।

2.ग्रामीण इलाकों में विद्रोह

#अवध में किसान आंदोलन-

  • अवध में किसानों का नेतृत्व सन्यासी बाबा रामचंद्र कर रहे थे।
  • किसानों का आंदोलन अत्यधिक राजस्व वसूल करने वाले जमींदारों के विरुद्ध था।इस आंदोलन में लगान कम करने, बेगार खत्म करने ,और दमनकारी जमींदारों का बहिष्कार करने की मांग की गई।
  • जून 1920 में जवाहर लाल नेहरू ने अवध के गांव में घूमना शुरू कर दिया उन्होंने  ग्रामीणों से बात की और उनकी समस्याओं को समझने की कोशिश करी। अक्टूबर 1920 अवध किसान सभा की स्थापना की गई इसका नेता जवाहरलाल नेहरू बाबा रामचंद्र और कुछ अन्य लोगों ने किया।

#आंध्र प्रदेश में आदिवासी आंदोलन

  • आदिवासी किसानों ने महात्मा गांधी किस स्वराज की विचार का अलग अर्थ निकाला।
  • 1920 के दशक के प्रारंभ में आंध्र प्रदेश की गुड़ेम पहाड़ियों में एक उग्र  गोरिल्ला आंदोलन ,अल्लूरी सीताराम राजू के नेतृत्व में पूर्ण रूप से फैल गया था।
  • असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर  सीतारामराजू ने महात्मा गांधी की महानता की बात की तथा लोगों को 'खादी' पहनने और शराब का त्याग करने को कहा।
  • अल्लूरी सीताराम राजू को पुलिस द्वारा पकड़ लिया गया और वर्ष 1924 में फांसी दे दी गई।
3. बागानों में स्वराज

  • असम के बागान ही मजदूरों के लिए आजादी का मतलब यह था कि उन चार दीवारों से जब चाहे आ जा सके जिसमें उनको बंद करके रखा गया है। इनके लिए आजादी का मतलब था कि वे अपने गांव से संपर्क रख पाएं।
  • 1859 के अंतर्देशीय उत्प्रवासन अधिनियम के अनुसार बागानी मजदूरों को बिना इजाजत बागान से बाहर जाने का अधिकार नहीं था।
  • बागानी मजदूरों को लगता था कि अब गांधी राज आ रहा है इसलिए अब तो हर एक को गांव में जमीन मिल जाएगी।लेकिन वह अपनी मंजिल पर नहीं पहुंच पाए रेलवे स्टेशन और स्टीमरो की हड़ताल के कारण वे रास्ते में ही फंस गई उन्हें पुलिस ने पकड़ लिया और उनकी बुरी तरह पिटाई की गई।
--आंदोलन वापस लेने का कारण-चोरी चोरा की घटना। यह घटना 4 फरवरी 1922 को संयुक्त प्रांत वर्तमान उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चौरी चौरा में हुई।


सविनय अवज्ञा आंदोलन की ओर

  कांग्रेस के अंतर्गत अलग-अलग विचार

  • कांग्रेस के कुछ नेता बड़े पैमाने पर संघर्षों से थक चुके थे और वर्ष 1919 के भारत सरकार अधिनियम द्वारा स्थापित प्रांतीय परिषदों के चुनाव में भाग लेना चाहते थे। उन्होंने अनुभव किया कि परिषदों के अंदर रहकर वे ब्रिटिश नीतियों का विरोध कर सकते हैं।
  • सी आर दास और मोती लाल नेहरू ने परिषद राजनीति में वापस लौटने के लिए कांग्रेस के भीतर ही स्वराज पार्टी का गठन कर दिया।
  • आंतरिक बहस और  असमिति की स्थिति में दो कारक ऐसे थे जिन्होंने वर्ष 1920 के अंत में भारतीय राजनीति का आकार बदल डाला-
  1. विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का प्रभाव।
  2. कृषि मूल्य‌  जो वर्ष 1926 से गिरने लगा और 1930 के बाद पूर्ण रूप से धराशाई हो गया।
साइमन कमीशन का गठन

  • साइमन कमीशन का गठन (1928) जॉन साइमन के नेतृत्व में किया गया था। साइमन कमीशन का मुख्य उद्देश्य भारत में संवैधानिक व्यवस्था की कार्यशैली की समीक्षा करना और उसके विषय में सुझाव देना था।
  • भारतीय नेताओं ने इस आयोग का विरोध किया क्योंकि इसमें कोई भारतीय सदस्य नहीं था।
  • वर्ष 1928 में जब साइमन कमीशन भारत आया तो उसका स्वागत साइमन कमीशन वापस जाओ के नारे के साथ किया गया।
  • अक्टूबर 1929 वायसराय लॉर्ड इर्विन ने भारत के लिए एक आधिकारिक स्थिति का अनिश्चित प्रस्ताव और भविष्य के संविधान पर चर्चा के लिए एक गोलमेज सम्मेलन की घोषणा की।
  • दिसंबर 1929 में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज की मांग या भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता की मांग को औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया गया।
  • यह घोषित किया गया कि 26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
दांडी यात्रा और सविनय अवज्ञा आंदोलन

  • देश को एकजुट करने के लिए महात्मा गांधी  नमक को एक शक्तिशाली प्रतीक के रूप में देखा।उन्होंने 31 जनवरी 1930 को वायसराय इर्विन को एक पत्र लिखा जिसमें 11 मांगों का आग्रह किया गया था। इन मांगों में नमक कर को खत्म करने की मांग भी शामिल थी।
  • नमक पढ़कर और उसके उत्पादन पर सरकार की एकाधिकार को गांधी जी ने ब्रिटिश शासन का सबसे क्रूर पक्ष बताया।इरविन मांग पर बात करने के लिए तैयार नहीं थी जिसके कारण गांधी ने आंदोलन शुरू करने का निर्णय लिया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन

गांधी जी ने 12 मार्च 1930 को 78 अनुयायियों के साथ गुजरात के तटीय शहर डांडी के लिए साबरमती आश्रम से अपनी यात्रा शुरू की। 6 अप्रैल को बैंक डौंडी पहुंचे और उन्होंने नमक कानून का औपचारिक रूप से उल्लंघन किया। उन्होंने समुद्री पानी को उबालकर नमक बनाना शुरू किया।

इस आंदोलन के अंतर्गत:-

  • विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया गया।
  • शराब की दुकानों का विरोध किया गया।
  • किसानों ने राजस्व और चौकीदारी कर देने से इनकार कर दिया।
  • गांव के अधिकारियों ने इस्तीफा दे दिया।
  • कई जगह पर  लोगों ने वन कानूनों का उल्लंघन किया।
  • इस आंदोलन से परेशान होकर ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेसी नेताओं को एक-एक करके गिरफ्तार करना शुरू कर दिया गया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन को बंद करना-

  • सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय शांतिपूर्ण सत्याग्रह के ऊपर हमला किया गया महिलाओं और बच्चों को पीटा गया और करीब 100000 लोगों को गिरफ्तार किया गया।जब एक प्रमुख नेता अब्दुल गफ्फार खान को अप्रैल 1930 में गिरफ्तार किया गया तो शहर में कई हिंसक घटनाओं की सूचना मिली।
  • इस स्थिति में महात्मा गांधी ने एक बार फिर आंदोलन को बंद करने का फैसला लिया। और 5 मार्च 1931 इर्विन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते को गांधी इरविन समझौता कहा जा गया।

सविनय अवज्ञा आंदोलन की पुनः स्थापना

दिसंबर 1931 में गांधी जी गोलमेज सम्मेलन के लिए लंदन गए लेकिन इस सम्मेलन का कोई लाभ नहीं हुआ और वह भारत वापस आए।कांग्रेस को अवैध घोषित किया गया तथा अब्दुल गफ्फार खान और जवाहरलाल नेहरू को दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया, इसलिए महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को पुनः शुरू किया। यह आंदोलन 1 वर्ष के लिए जारी रखा गया लेकिन वर्ष 1934 तक इस आंदोलन का प्रभाव कम हो गया।

विभिन्न समूहों के लिए आंदोलन का अर्थ

सामाजिक समूह ने इस आंदोलन में भाग लिया और उनका स्वराज का अर्थ अलग-अलग था-

  • ग्रामीण इलाकों में गुजरात के पाटीदार और उत्तर प्रदेश के जाट जैसे सम्मिलित किसान समुदाय सविनय अवज्ञा आंदोलन में उत्साह समर्थक थे।
  • इनके लिए स्वराज की लड़ाई भारी लगान के विरुद्ध थी। परंतु जब वर्ष 1931 में सविनय अवज्ञा आंदोलन को लगाना को कम किए बिना वापस ले लिया गया तो इन्हें बड़ी निराशा हुई जिसके चलते वर्ष 1932 में जब आंदोलन दोबारा शुरू हुआ तो उनमें से बहुत किसानों ने हिस्सा नहीं लिया।
  • गरीब किसानों को जमीन के मालिकों को किराए का भुगतान करना कठिन हो गया।भी कई तरह की कट्टरपंथी आंदोलन में शामिल हो गए जो समाजवादी और कम्युनिस्टों के नेतृत्व में चल रहे थे उन्हें आशा थी कि उन्हें किराए का कोई भुगतान और नहीं करना पड़ेगा।
  • जीडी बिरला और पुरुषोत्तमदास ठाकुरदास जैसी प्रसिद्ध उद्योगपतियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर औपनिवेशिक नियंत्रण के विरुद्ध आवाज उठाई।
  • इस आंदोलन में महिलाओं ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन की सीमाएं

  • स्वराज की अवधारणा ने सभी सामाजिक समूह को प्रभावित नहीं किया था। ऐसा एक समूह अस्पृश्य का था जो 1930 मैं स्वयं को दलित कहने लगे थे।
  • गांधीजी ने दलितों को हरिजन या भगवान के बच्चे बताया।‌गांधी जी का मानना था कि अस्पृश्यता को खत्म किया बिना स्वराज की 100 साल तक स्थापना नहीं की जा सकती।
  • उन्होंने दलितों को मंदिरों में प्रवेश, और उनकी सार्वजनिक कुएं, तालाब, सड़कों और स्कूलों तक पहुंच बनाने के लिए सत्याग्रह किए।
  • गांधीजी ने सफाई के काम को सम्मानित करने के लिए स्वयं शौचालय को साफ किया गांधीजी ने अछूतों के बारे में अपनी मानसिकता बदलने के लिए ऊपरी वर्ग से आग्रह किया।
दलित नेताओं के निर्णय
  • दलित नेता अपने समुदाय की समस्याओं का एक अलग राजनीतिक समाधान चाहते थे।
  • डॉ बी आर अंबेडकर शैक्षिक संस्थानों में आरक्षित सीटों और अलग निर्वाचन क्षेत्रों की मांग की जिससे विदाई परिषदों के लिए दलित सदस्यों का चयन किया जा सके।
  • डॉक्टर बी आर अंबेडकर ने दलितों को वर्ष 1930 में दमित वर्ग संघ मैं संगठित किया।दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की मांग के कारण दूसरे गोलमेज सम्मेलन में महात्मा गांधी और डॉक्टर अंबेडकर के मध्य मतभेद थे।
  • डॉक्टर अंबेडकर ने अंततः गांधीजी के विचार को स्वीकार कर लिया, जिसके परिणाम स्वरूप सितंबर 1932 को पूना समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
  • इससे दमित वर्गों को प्रांतीय और केंद्रीय विधान परिषद में आरक्षित सीटें मिल गई लेकिन उनके लिए मतदान सामान्य व निर्वाचन क्षेत्र में ही होता था।
हिंदू मुस्लिम संघर्ष
  • भारतीय कुछ मुस्लिम राजनीतिक संगठनों ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में कोई रुचि नहीं दिखाई।
  • असहयोग और खिलाफत आंदोलन शांत होने के बाद मुस्लिमों का एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस से अलग हो गया।
  • हिंदू मुस्लिमों के बीच संबंध खराब हुए हुए और दोनों समुदाय उग्र धार्मिक जुलूस निकालने लगे।
  • वर्ष 1930 में मोहम्मद इकबाल ने मुसलमानों के लिए अल्पसंख्यक राजनीतिक हितों की रक्षा के लिए‌ पृथक निर्वाचिका की मांग की।
हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग के बीच मतभेद
  • कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने एकता के लिए फिर से बात करने के प्रयास किए , वर्ष 1927 में यह महसूस हुआ कि एकता स्थापित की जा सकती है।
  • कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच मतभेद सिर्फ भाभी विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व करने का था।
  • मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना दो शर्तों पर मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचक आंख की मांग को छोड़ने के लिए तैयार थे। ं
  • पहला-केंद्रीय सभा में मुसलमानों को आरक्षित सीटें दी जाएं।
  • दूसरा- प्रतिनिधित्व, मुस्लिम वर्चस्व वाली प्रांतों मैं आबादी के अनुपात में हूं।
  • वर्ष 1928 में एम आर जे कर की अगुवाई में हिंदू महासभा के अत्यधिक विरोध के कारण यह मुद्दा हल नहीं हो पाया।
सामूहिक अपनत्व की भावना
-राष्ट्रवादी भावना तक फैलती है जब विभिन्न क्षेत्रों और समुदाय के लोग सामूहिक अपनत्व की भावना विकसित करना शुरू कर देते हैं।
-इतिहास,कथा, लोकगीत ,गीत, लोकप्रिय चित्र और प्रतीक सभी ने राष्ट्रवाद के निर्माण में भूमिका निभाई।
निम्नलिखित तरीकों से स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भारत में सामूहिक अपनत्व की भावना दिखी-
  • किसी राष्ट्र की पहचान को आकार चित्र या छवि में दर्शाया जाता है। भारत माता की छवि 1870 के दशक में पहली बार बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने बनाई थी। उन्होंने भारत के लिए वंदे मातरम गीत भी लिखा।
  • भारत माता की छवि को पहली बार अवनींद्र नाथ टैगोर ने चित्रित किया था।भारतीय लोक गीत और लोक कथाओं ने राष्ट्रवाद के विचार को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • बंगाल में रविंद्र नाथ टैगोर और मद्रास में निटेसा शास्त्री ने लोक कथा और गीतों का विशाल संग्रह एकत्र किया ।
  • स्वदेशी आंदोलन के दौरान बंगाल में तिरंगा ध्वज तैयार किया गया।इसमें 8 प्रांतों का प्रतिनिधित्व किया गया था और एक अर्धचंद्र को हिंदू और मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करते हुए दिखाया गया था।
  • वर्ष 1921 में गांधी जी ने स्वराज तैयार  कर लिया था। जिसके केंद्र में एक लड़का था जो गांधी जी के आदर्श का प्रतिनिधि था।


By YATENDRA KUMAR
VECTOR STUDIES